सत नमो आदेश! गुरूजी को आदेश!
जन सामान्य का मानना है कि नाथ संप्रदाय का जन्म सातवी सताब्दी के आसपास हुआ है, यह बात एक दम झूठ है ! नाथ संप्रदाय तो सतयुग से चला आ रहा है! यह जरूर कहा जा सकता है कि नाथ संप्रदाय सातवी सताब्दी में बहुत फला फूला और इस सारे विश्व में सूर्य की तरह चमकने लगा !
नाथ संप्रदाय के संस्थापक स्वयं भगवान आदिनाथ शिव है! उन्ही से प्रेरित होकर भगवान दत्तात्रेय ने जन कल्याण के लिए नाथ संप्रदाय की रचना की. प्रथम नाथ सहस्त्रार्जुन थे ! सहस्त्रार्जुन भगवान दत्तात्रेय के प्रथम शिष्य थे और वो प्रथम नाथ थे
! मेरे मित्र सिद्ध श्री. विक्रांतनाथजी के गुरूदेव सिद्ध श्री.
रक्खारामजी कहते थे कि नाथ का अर्थ होता है न अथ अर्थात जिस से ऊपर कुछ न हो पर लोग नाथ का अर्थ स्वामी के रूप में मान लेते है!
सतयुग में नवनाथ
इस प्रकार थे :
१. आदिनाथ
२. दत्तात्रेय
३. सहस्त्रार्जुन
४. देवदत
५. जड्भरत
६. नागार्जुन
७. मत्स्येन्द्रनाथ
८. जालंधरनाथ
९. गोरक्षनाथ
स्कंदपुराण और नारदपुराण में नारद ब्रह्म संवाद में लिखा है कि एक बार माँ पार्वती ने शिव से कहा जिस जगह आप है उस जगह मै भी हूँ ! मेरे बिना आप कुछ भी नहीं इस लिए मेरी सत्ता
ही प्रधान है ! भगवान शिव ने कहा देवी जिस जगह घड़ा होता है उस जगह मृतिका होती है पर जिस जगह मृतिका हो उस जगह घड़ा भी हो ये जरूरी तो नहीं पर माँ पार्वती नहीं मानी !
माँ पार्वती के घमंड का नाश करने के लिए भगवान शिव ने गोरक्षनाथ के रूप में अवतार
लिया और योग विद्या का प्रचार किया ! योग विद्या भगवान
गोरक्षनाथ की विद्या मानी जाती है ! अघोर विद्या भगवान शिव की विद्या मानी जाती है ! योनि साधना माँ भगवती
की विद्या मानी जाती है ! इन तीनो विद्याओ का मिश्रण ही नाथ संप्रदाय है ! नाथ संप्रदाय की श्रेष्ठता इसी बात से सिद्ध
होती है कि सतयुग
में राक्षसराज रावण को नाथ योगी सहस्त्रार्जुन ने ६ महीने तक अपनी बगल में दबाकर
शिव की तपस्या की थी और बाद में सहस्त्रार्जुन की क़ैद से उन्हें भगवान परशुराम ने छुडाया था !
कलयुग में भगवान दत्तात्रेय ने दोबारा नाथ पंथ का गठन किया और नवनाथों का संघ स्थापित किया ! आगे चलकर नवनाथो में ८४ सिद्ध
हुए ! ८४ सिद्धो के माध्यम से नाथ पंथ का बहुत प्रचार हुआ ! नवनाथो में १२ पंथ हुए है ! प्रत्येक पंथ में नवनाथों की प्रणाली अलग अलग है !
नवनाथों के नाम इस प्रकार है :
१.आदिनाथ
२.उदयनाथ
३.सत्यनाथ
४.संतोषनाथ
५.अचम्भेनाथ
६.गज कंथडनाथ
७.चौरंगीनाथ
८.मत्स्येन्द्रनाथ
९.गोरक्षनाथ
हमारे महाराष्ट्र में प्रचलित नवनाथ इस प्रकार है :
१.गोरक्षनाथ
२.जालिंदरनाथ
३.चर्पटीनाथ
४.अडबंगनाथ
५.कानिफनाथ
६.मच्छिंद्रनाथ
७.चौरंगीनाथ
८.रेवणनाथ
९.भर्तुहरीनाथ
नाथ सम्प्रदाय में १२ पंथ हुए जो इस प्रकार है :
१. सत्यनाथी (सतनाथी ) – इनके मूल प्रवर्तक भगवान शिव है और इस पंथ के योगीजन उत्तरांचल में निवास करते है !
२. रामनाथी (राम के ) – इनके मूल प्रवर्तक भगवान
शिव है और इस पंथ के योगीजन हरियाणा और नेपाल में निवास
करते है !
३.पागलपंथी ( पाकल ) – इनके मूल प्रवर्तक भगवान
शिव है और इस पंथ के योगीजन पाकिस्तान और हरियाणा में निवास करते है !
४.पाव पंथ (पावक ) – इनके मूल प्रवर्तक भगवान शिव है और इस पंथ के योगीजन राजस्थान में निवास करते है ! इनका सम्बन्ध जालंधरनाथ से बताया जाता है !
५. धर्मनाथ ( धर्मनाथी ) – इनके मूल प्रवर्तक भगवान शिव है और इस पंथ के योगीजन नेपाल और उत्तरप्रदेश में निवास
करते है !
६. माननाथी ( मानोनाथी ) – इनके मूल प्रवर्तक भगवान शिव है और इस पंथ के योगीजन राजस्थान में निवास करते है !
७.कपलानी (कपिलपंथ ) – इनके मूल प्रवर्तक गुरु गोरक्षनाथ है और इस पंथ के योगीजन बंगाल और हरियाणा में निवास
करते है !
८.गंगानाथी ( गंगनाथी ) – इनके मूल प्रवर्तक गुरु गोरक्षनाथ है और इस पंथ के योगीजन बंगाल और पंजाब में निवास
करते है !
९.नटेश्वरी ( दरयानाथी ) – इनके मूल प्रवर्तक गुरु गोरक्षनाथ है और इस पंथ के योगीजन कश्मीर , पंजाब और पाकिस्तान में निवास करते है !
१०.आई-पंथ ( आई के ) – इनके मूल प्रवर्तक गुरु गोरक्षनाथ है और इस पंथ के योगीजन बंगाल, हरियाणा और पंजाब में निवास करते है !
११. वैराग पंथ ( भर्तृहरि वैराग ) – इनके मूल प्रवर्तक गुरु गोरक्षनाथ है और इस पंथ का सम्बन्ध योगी भर्तृहरि जी के साथ बताया जाता है ! इस पंथ के योगीजन राजस्थान में निवास करते है !
१२. रावलपंथी – इनके मूल प्रवर्तक गुरु गोरक्षनाथ है और इनका सम्बन्ध सिद्ध
रावलनाथ से बताया जाता है ! इस पंथ के योगीजन पाकिस्तान और अफगानिस्थान में निवास करते है !
इन १२ पंथो के अलावा भी नाथ पंथ में कुछ पंथ पाए जाते है जिनमें से कुछ मुख्य पंथ इस प्रकार है – कंथड पंथी, बन पंथ,
ध्वज पंथ, पंख पंथ,
वारकरी पंथ, कायिक नाथी,
तारक नाथी , पायल नाथी आदि ऐसे अनेक पंथ है जो नाथ सम्प्रदाय से सम्बन्ध रखते है ! यह अपने आप को शिव पंथ और गोरक्ष पंथ के अनुयायी बताते है, वास्तव में यह पंथ १२ पंथो के ही उप पंथ है जिन में औघड सेवडा और कुछ सूफी पंथ भी है जिनका प्रसार मुस्लिम योगियो में हुआ है
! नाथ पंथ मांस मदिरा का विरोध करता है पर कुछ अघोर संत है जो मांस मदिरा का प्रयोग करते है जो अघोर संतो के लिए वर्जित नहीं है क्यूंकि वे स्वयं शिव का स्वरुप है और पाप पुण्य से ऊपर उठ जाते है !
इस प्रकार गुरु शिष्य परम्परा से अनेक पंथ बन गए है , कुछ पंथ गुप्त हुए और कुछ प्रकट
है ! नाथ पंथ में कुछ योगी गृहस्थ होते है और कुछ ब्रह्मचारी रहते है ! अतः नाथ पंथ का पूरा विवरण माँ सरस्वती के लेखन से भी परे की बात है ! १२ पंथो में आई पंथ को श्रेष्ठ माना गया है और सिक्खों के धार्मिक ग्रन्थ “ गुरु ग्रन्थ साहिब “ जी के जपुजी साहिब में भी आई पंथ की प्रशंसा की गयी है और १२ पंथो में श्रेष्ठ माना गया है ! “ जपुजी साहिब ” में लिखा है – “ मुंदा संतोख
सरम पट झोली ध्यान की करे भिभूत, किन्था काल कुआरी काया जुगत धंधा परतीत, आई पंथी सगल जमाती मन जीते जगजीत, आदेश तीसे आदेश, आद अनिल अनाद अनाहद जुग जुग इको भेस ”
अब बात
करते है शाबर मंत्रोंकी. हर कोई संस्कृत मंत्रोंका उच्चारण ठीक तरह से नहीं कर
पाता और संस्कृत मन्त्रोंको सिद्ध करते वक्त बहुत सारे कठोर नियमोंका पालन करना
होता है. इस बात को ध्यान में रखते हुए जनकल्याण हेतु नवनाथ और चौरासी
सिद्धोंद्वारा आम बोलचाल की भाषाओमे शाबर मंत्रोंका निर्माण किया गया. ये मंत्र
लगभग सभी भाषाओमे पाए जाते है. शाबर मन्त्रोंको किसीभी जाती या धर्म के स्त्री
पुरुष गुरुदेवकीकृपासे बड़ी आसानीसे सिद्ध कर सकते है.
ईश्वर आप सब पर अपनी कृपा दृष्टी बनाएं रखे
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धन्यवाद