राम राम दोस्तों, मै
वैभवनाथजी इस वेबसाईट में आपका स्वागत करता हूँ. कुछ लोग कहते
है की साधना करने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है, तो कुछ लोग कहते है
की गुरु की आवश्यकता नहीं होती. यह विडियो इसी बात को लेकर बनाया है, तो आइये
एक कथा के माध्यम से यह जानते है की साधना करने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है
या नहीं ?
एक बार की बात
है नारद जी विष्णु जी से मिलने गए ! विष्णु जी ने उनका बहुत सम्मान किया ! जब नारद जी वापिस गए तो विष्णु जी ने कहा हे लक्ष्मी
जिस स्थान पर नारद जी बैठे थे ! उस स्थान को गाय के गोबर से लीप
दो ! जब विष्णु जी यह बात कह रहे थे तब नारद जी
बाहर ही खड़े थे ! उन्होंने सब सुन लिया और वापिस आ गए और विष्णु जी से पुछा हे विष्णु जी जब मै आया तो आपने मेरा खूब सम्मान
किया पर जब मै जा रहा था तो आपने
लक्ष्मी जी से यह क्यों कहा कि जिस स्थान पर नारद बैठा था उस स्थान को गोबर से लीप दो ! विष्णु जी ने कहा हे
नारद मैंने आपका सम्मान इसलिए किया क्योंकि
आप देव ऋषि है और मैंने देवी लक्ष्मी से ऐसा इसलिए कहा क्योंकि आपका कोई गुरु नहीं है ! आप
निगुरे है !
जिस स्थान पर कोई
निगुरा बैठ जाता है वो स्थान गन्दा हो जाता है ! यह सुनकर नारद जी ने
कहा हे भगवान आपकी बात सत्य है पर मै गुरु किसे बनाऊ ! विष्णु जी बोले हे नारद धरती पर चले जाओ जो
व्यक्ति सबसे पहले मिले उसे अपना गुरु मानलो ! नारद जी ने प्रणाम
किया और चले गए ! जब नारद जी धरती पर आये तो उन्हें सबसे पहले एक मछली पकड़ने वाला एक मछुवारा मिला ! नारद जी वापिस
विष्णु जी के पास चले गए और कहा महाराज वो
मछुवारा तो कुछ भी नहीं जानता मै उसे गुरु कैसे मान सकता हूँ ! यह
सुनकर विष्णु जी ने कहा नारद जी अपना प्रण पूरा करो ! नारद जी वापिस आये और उस मछुवारे से
कहा मेरे गुरु बन जाओ !
पहले तो मछुवारा
नहीं माना बाद में बहुत मनाने से मान गया ! मछुवारे को
राजी करने के बाद नारद जी वापीस विष्णु जी के पास गए और
कहा हे विष्णु जी मेरे गुरूजी को तो कुछ
भी नहीं आता वे मुझे क्या सिखायेगे ! यह सुनकर विष्णु जी को क्रोध आ गया और उन्होंने कहा हे
नारद गुरु निंदा करते हो जाओ मै आपको श्राप देता हूँ कि आपको ८४
लाख योनियों में घूमना पड़ेगा ! यह सुनकर नारद जी ने दोनों हाथ जोड़कर कहा हे विष्णु जी इस श्राप से बचने का
उपाय भी बता दीजिये ! विष्णु जी ने कहा
इसका उपाय जाकर अपने गुरुदेव से पूछो ! नारद जी ने सारी बात जाकर गुरुदेव को बताई !
गुरूजी ने कहा ऐसा करना विष्णु जी
से कहना ८४ लाख योनियों की तस्वीरे धरती पर बना दे फिर उस पर लेट कर गोल घूम लेना
और विष्णु जी से कहना ८४ लाख योनियों में घूम आया मुझे माफ़ करदो आगे से गुरु निंदा नहीं करूँगा ! नारद जी ने विष्णु जी के पास जाकर ऐसा ही किया उनसे कहा ८४ लाख योनिया धरती पर बना दो और फिर उन पर लेट कर घूम लिए और कहा विष्णु जी मुझे माफ़ कर दीजिये आगे
से कभी गुरु निंदा नहीं करूँगा ! यह सुनकर विष्णु जी ने कहा जिस गुरु की निंदा
कर रहे थे उसी ने मेरे श्राप से बचा लिया !
गुरुदेव की महिमा अपरंपार है !
मेरे मित्र श्री. विक्रांतनाथजीने लोगो को कहते हुए सुना है कि
गुरु पूरा होना चाहिए इसलिए वो ऐसे लोगो को गुरु बनाते है जिनका नाम बहुत
बड़ा होता है जिनके
आगे पीछे लोगो कि भीड़ लगी होती है ! जिनके दर्शनों से भक्तो पर कृपा आने लगती है पर ऐसा कुछ नहीं होता ! कोई भी
साधक कभी पूरा नहीं हो सकता क्योंकि पूरे तो केवल ईश्वर है और दूसरा ईश्वर कोई बन नहीं सकता ! इसलिए माना जाता है कि गुरु गूंगे गुरु बाबरे गुरु के रहिये दास गुरु जो भेजे नरक नु स्वर्ग कि रखिये आस !
गुरु चाहे गूंगा
हो चाहे गुरु बाबरा हो (पागल हो) गुरु के हमेशा दास रहना चाहिए ! गुरु यदि नरक को भेजे तब भी शिष्य को यह
इच्छा रखनी चाहिए कि मुझे स्वर्ग प्राप्त होगा ! यदि शिष्य को गुरु
पर पूर्ण विश्वास हो तो उसका बुरा स्वयं गुरु भी नहीं कर सकते ! गुरु ग्रन्थ साहिब में एक प्रसंग है कि एक
पंडीत ने धन्ने भगत को एक साधारण
पत्थर देकर कहा इसे भोग लगाया करो एक दिन भगवान कृष्ण दर्शन देगे ! उस धन्ने भक्त के विश्वास से
एक दिन उस पत्थर से भगवान प्रकट हो गए ! गुरु तो केवल
गुरु है फिर चाहे वे लोक गुरु हो या पंथक गुरु !
मेरे मित्र श्री. विक्रांतनाथजी का मानना है कि उनके दीक्षा गुरु सिद्ध रक्खा
रामजी है और यह सारी सृष्टि उनकी शिक्षा गुरु है ! सिद्ध रक्खा रामजी का कहना था बुरे से बुरे इन्सान को भी ईश्वर ने किसी न किसी अच्छे काम के लिए जीवित रखा है ! उनका कहना था कमल सदैव कीचड़ में ही पैदा होता है ! कमल तोड़ लो और
कीचड़ को उसी जगह छोड़ दो ! मेरे मित्र श्री. विक्रांतनाथजी का मानना है
सारा जग मुर्शद दा मै जग वीच कल्ला मुरीद !
यह सारी सृष्टि गुरु प्रधान है और इस सृष्टि में केवल एक मात्र
शिष्य मै ही हूँ ! इसलिए आपके गुरु चाहे जो भी हो केवल और केवल अपने गुरु पर श्रद्धा रखो और गुरु वचनों का पालन तन
मन और धन से करो क्योंकि गुरु जो भेजे नरक को स्वर्ग कि रखिये आस !
दोस्तों मै वैभवनाथजी आशा करता हूँ की आप
लोग यह बात जान गए होंगे की हमे गुरु की आवश्यकता है या नहीं
ईश्वर आप सब पर अपनी कृपा दृष्टी बनाए रखे.
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जय सदगुरुदेव !