04 February 2018

सर्व पितृ शांति साधना | Sarva Pitru Shanti Sadhana



राम राम दोस्तों, मै वैभवनाथजी इस वेबसाईट में आपका स्वागत करता हूँ. आज हम बात करते है सर्व पितृ शांति साधना की | पितृ पक्ष के १५ दिन में प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन को सवार सकता है क्योंकि इन १५ दिनों में पितृ लोक से हमारे पितृ धरती पर आते है और यदि हम श्राद्ध आदि विधि से उन्हें संतुष्ट कर दे तो श्राद्ध से संतुष्ट पितृ हमे आशीर्वाद देते है ! इन १५ दिनों में यदि हम श्राद्ध आदि क्रियाये ना करे तो हमारे पितृ भूखे ही पितृ लोक को वापिस चले जाते है और हमे श्राप दे देते है जिससे अनेकों प्रकार की विपदाए हमारे जीवन को घेर लेती है और जीवन एक तरह की नीरसता से भर जाता है ! पितरों के रुष्ट हो जाने पर घर में क्लेश की स्थिति बन जाती है ! व्यक्ति का अध्यात्मिक विकास रुक जाता है ! पितरों के रुष्ट हो जाने पर घर में प्रेत बाधाए उत्पन्न हो जाती है और व्यक्ति का सारा धन बीमारीओं में ही निकल जाता है !

पितरों को संतुष्ट करने के अनेकों उपाएँ है जिनमे से कुछ यहाँ दे रहे है !

. यदि हम कौवे की सेवा करे तो हमारे पितृ संतुष्ट होते है !
२. पितृ पक्ष में श्रीमद्भगवत गीता का पाठ करे और उस पाठ  के फल का दान अपने गौत्र के पितरों के नाम पर दान करने से पितृ संतुष्ट होते है और उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है !
३. यदि पितृ पक्ष में गरुड़ पुराण का पाठ किया जाए और पाठ के फल का दान अपने गौत्र के पितरों के नाम पर दान करने से पितृ संतुष्ट होते है और नरक की यातनाओं से बच जाते है एवं मोक्षगामी होते है !
४. पीपल वृक्ष की जड़ में मीठा जल अर्पित करने से और दिया जलाने से भी पितृ संतुष्ट होते है !
५. कुत्तों की सेवा करने और मछलियो को आटा खिलाने से भी पितृ संतुष्ट होते है !
६. यदि व्यक्ति अपने कुलदेवता कुलदेवी या कुलगुरु का पूजन करे तो कुल में उत्पन्न होने वाले सभी पितृ संतुष्ट हो जाते है !
७. यदि देवी भागवत का पाठ किया जाए और पाठ का पुण्य अपने पितरों के लिए दान किया जाए तो भी पितृ संतुष्ट होते है !

ऐसे अनेकों उपाएँ है जिससे पितृ संतुष्ट होते है !

श्रीमद्भगवत गीता के १० वे अध्याय के २९ वे श्लोक में भगवान्  श्रीकृष्ण कहते है कि पितरों में अर्यमा पितृ मैं हूँ ! पितृ अर्यमा को  सभी पितरों का पितृ माना जाता है ! अतः यदि केवल अर्यमा पितृ को संतुष्ट कर दिया जाए तो हमारे पितृ संतुष्ट हो जायेंगे !
  
अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्।
पितृणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्।।29।।

मैं नागों में शेषनाग और जलचरों का अधिपति वरुण देवता हूँ और पितरों में अर्यमा नामक पितर तथा शासन करने वालों में यमराज मैं हूँ। (10.29)

यहाँ हम एक बहुत ही सरल विधान बता रहे है ! आप इसे करे और अपने जीवन को धन्य बनाये !

|| विधान ||

      काले और सफ़ेद तिलों को गाय के शुद्ध घी में मिला कर मिश्रण बना ले ! यदि गाय का घी मिले तो साधारण देसी घी इस्तेमाल करे ! घी की ज्योत जलाए और एक गोबर के उपले को सुलगा ले ! उस सुलगते हुए उपले पर उस मिश्रण की १०८ आहुति डाले ! फिर उस आहुति के बाद दही और शक्कर में रोटीयो के छोटे-छोटे टुकड़े कर मिला ले ! अब इस मिश्रण की भी २१ आहुति दे ! और उसी उपले पर अंत में आहुति देसी घी की दे और बार गंगा जल का छींटा मारे ! यदि गंगाजल हो तो साधारण जल या किसी तीर्थ के जल का छींटा भी लगा सकते है !
इस क्रिया के बाद अर्यमा नामक पितृ से प्रार्थना करे कि मेरे गौत्र के सभी पितरो को संतुष्ट करे ! दही शक्कर और रोटियों के बचे हुए उस मिश्रण को अपने घर की छत पर डाल दे और उसके चारो तरफ एक लोटा पानी से घेरा/गोला बना दे ! ऐसा १५ दिन मतलब पूरे पितृ पक्ष में करे ! और अंतिम दिन अपने पितरों के नाम से किसी ब्राह्मण को भोजन कराये एवं वस्त्र आदि देकर संतुष्ट करे ! यदि कोई ब्राह्मण ना मिले तो किसी गरीब व्यक्ति को भी दान कर सकते है !

|| आहुति देने का मंत्र ||

अर्यमाए नमः स्वधा
OM ARYAMAE NAMAH SWADHA

      नोटमंत्र में स्वधा बोलते समय अग्नि में आहुति देनी है और यदि गोबर का उपला ना मिले तो आप आम की लकड़ी या लाल चन्दन और सफ़ेद चन्दन की लकड़ी का भी इस्तेमाल कर सकते है !

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आप सब पर आपके पितरों की कृपा बनी रहे….!

जय सद्गुरुदेव